माता नारायणी की कहानी | धार्मिक पारिवारिक कहानी | Narayani mata ki katha | Kailash ji ke kisse

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  • Опубликовано: 16 окт 2024
  • दोस्तों आपको इस चैनल के द्वारा राजस्थानी मारवाड़ी कहानी (किस्से) सुनने को मिलेंगी, जिनको आप अपने पुरे परिवार के साथ बैठकर एकसाथ सुन सकते है और आनंद ले सकते है |
    कैलाश प्रजापति अलवर (राजस्थानी ) के किस्सों में आप सभी, दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, भाई-बहिन आदि का हमारे किस्सों में स्वागत करते है |
    Story​: Kailash Prajapati
    Manger​​: Prakash Prajapati (PK)
    Comera: Hemraj
    Editing​​ : Ramsingh Prajapati (R K)
    Director​​: Shri. Kailash Ji Prajapat
    Producer​​: Ramsingh Prajapati(R K)
    Studio​​: PK Studio & Emitra Karana
    नोट : दोस्तों यदि आप भी अपने बुजुर्गो के पुराने किस्से सभी लोगो में शेयर करना चाहते है तो आप हमसे संपर्क कर सकते है हम आपके किस्से सभी दोस्तों के साथ शेयर करेंगे |
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    कहानी नारायणी माता : मान्यता है कि सेन समाज की कुलदेवी माता नारायणी का विवाह हुआ व प्रथम बार उनके पति के साथ वे अपने ससुराल जा रही थीं। चूंकि उस समय आवागमन के साधन नहीं थे, इसलिए दोनों पैदल ही जा रहे थे। गर्मियों के दिन थे, इसीलिए उन्होंने जंगल में एक वट वृक्ष के नीचे विश्राम करने का विचार किया। जब वे विश्राम कर रहे थे, तभी अचानक एक सांप ने आकर उनके पति को ढंस लिया और वे वहीं मर गये। कहा जाता है कि जंगल सूना था और दोपहर का समय था। नारायणी माता बिलख-बिलख कर रोने लगीं। शाम के समय कुछ ग्वाल अपनी गायों को लेकर वहां से गुजरे तो नारायणी माता ने उनसे उनके पति के दाह संस्कार के लिए चिता बनाने को कहा। ग्वालों ने आसपास से लकड़ियाँ लाकर चिता तैयार की। मान्यता है कि उस समय सती प्रथा थी। इसीलिए अपने पति को साथ लेकर नारायणी माता भी उनके साथ चिता पर बैठ गईं।
    अचानक चिता में आग प्रज्वलित हो गई, जिसे ग्वालों ने चमत्कार मान नारायणी माता से प्रार्थना की कि- "हे माता! हम आपको देवी रूप मानकर आपसे कुछ मांगना चाहते हैं।" चिता से आवाज़ आई कि- "जो मांगना है मांग लो।" उस समय अकाल पड़ा हुआ था। ग्वालों ने कहा कि- "हे माता! हमारे इस स्थान पर पानी की कमी है, जिससे हमारे जानवर मर रहे हैं। कृपा कर हम पर दया करें।" चिता से आवाज आई कि- "तुम में से एक व्यक्ति इस चिता से लकड़ी उठा कर भागो और पीछे मुड़कर मत देखना। जहां भी तुम पीछे मुड़कर देखोगे, पानी की धारा वहीं रुक जायेगी।" एक ग्वाला लकड़ी उठाकर भागा और भागते-भागते वह दो कोस के करीब पहुंच गया। उसके मन में शंका हुई कि कहीं देखूँ पानी आ रहा है या नहीं और जैसे ही उसने पीछे मुढ़कर देखा पानी वहीं रुक गया। आज उसी चिता वाले स्थान पर कुण्ड बना दिया गया है और उस कुण्ड से धारा के रूप में पानी दो कोस दूर जाकर समाप्त हो जाता है, जो एक चमत्कार है।
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